लेखनी प्रतियोगिता -19-Sep-2022 समुद्री डाकुओं की कैद में में


समुद्री डाकुओं की कैद में

बीच समंदर में आते आते जहाज़ ने अपनी रफ्तार पकड़नी शुरू कर दी. चूंकि दुबई के बंदरगाह पर हमने माल उतार दिया था इसलिए जहाज़ खाली था. हमारे जहाज की उम्र 30 साल हो चुकी थी और वह दिन भर में 200 नॉटिकल मील का ही सफ़र तय कर सकता था. हम समुद्री डाकुओं के डर की वजह से सोमालिया से काफी दूरी बनाते हुए चल रहे थे
सफ़र के पहले ही चरण में उनके साथ वो सब कुछ हुआ जो वो कभी किस्से कहानियों में ही पढ़ा करते थे. वे उन 22 लोगों में थे जिन्हें सोमालिया के समुद्री डाकुओं नें एक साल से भी ज्यादा बंधक बनाए रखा।
ये सब उत्कर्ष ने एक साल बाद समुद्री डाकुओं की कैद से मुक्त हो कर आने के बाद बताया।

पूरा एक साल पानी के जहाज पर बिताने के बाद आखिरकार उत्कर्ष रिहा हुआ और लखनऊ में अपने घर पहुंचा। समंदर की खामोश लहरों के दरम्यां एक शाम मौसम बेहद साफ़ था. तकरीबन पौने चार बजे के आसपास  हमारा जहाज एमटी रॉयल ग्रेस हिंद महासागर के बीचो बीच बढ़े चले जा रहा था. ओमान पार कर चुके थे और हमारा गंतव्य था नाइजीरिया. हमारा जहाज भी नाइजीरिया का था और उसका मालिक भी वहीं रहता है. इस सफर के बीच में हमें दक्षिण अफ्रीका के केप टाउन शहर में भी रुकना था.

थोड़ी देर में हमारी नज़र एक 'स्पीड बोट' पर पड़ी. वो तेज़ी के साथ हमारे जहाज़ की तरफ आ रही थी. दूरबीन से देखा उसमे 9 से 10 लोग सवार थे. करीब आते आते उन्होंने गोलियां चलानी शुरू कर दी थी. उनके पास आधुनिक हथियार थे.

गोलियां चलाते हुए वो हमारे जहाज़ तक पहुँच चुके थे. हम कुछ नहीं कर सकते थे क्योंकि स्पीड बोट की रफ़्तार बहुत तेज़ थी. वहां से भागने का कोई उपाय नहीं था.

स्पीड बोट से आए लोगो ने हमारे जहाज़ पर रस्सियां फेंकनी शुरू कर दी और उसके सहारे ऊपर चढ़ने लगे. अब तक हमें आभास हो चुका था कि ये समुद्री डाकू ही हैं.

फिर बंदूकें भिड़ा कर उन्होंने हमें बंधक बना लिया. हमारे जहाज़ पर कुल 22 लोग थे, जिसमे 17 भारतीय, तीन नाईजीरियाई, एक बांग्लादेशी और एक पाकिस्तानी शामिल हैं.

मैं उस वक़्त इंजन रूम में काम कर रहा था तभी ऊपर केबिन से हमें फोन आया सब ऊपर आ जाओ, ऊपर पहुंचे तो सब बंधक बने हुए थे। हमें भी उन्ही के साथ कतार में खड़ा कर दिया गया। समुद्री डाकुओं का मूड ख़राब था. इन में से सभी को अंग्रेजी नहीं आती थी। सिर्फ एक या दो ही ऐसे थे जो अंग्रेजी में बात कर सकते थे।

हमारे जहाज़ पर क़ब्ज़ा करने वाले समुद्री डाकुओं का नेतृव कर रहा था, छोटे क़द का हबसी वह बड़ा ही डरावना दिख रहा था. उसका एक दांत सोने का था.

तभी हबसी ने घोषणा की कि वो अब हमारे जहाज़ का कप्तान है और जहाज़ को सोमालिया की तरफ मोड़ दिया गया. उनके पास 'ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम' (जीपीएस) था और उसी के हिसाब से हमारे सफ़र की दिशा तय की गयी.

इस बीच जहाज़ के हमारे सभी साथी बंदूकों के साए में बंधक बने रहे. सभी समुद्री डाकुओं के पास एके-47 रायफलें थीं. इस गिरोह के बड़े ओहदेदारों के पास माऊज़र थे. उनके पास रॉकेट लांचर भी थे.

वे बेहद क्रूर थे, किसी को हिलने भी नहीं देते
इस बीच सबको जहाज़ के ब्रिज पर ही बंधक बनाए रखा गया. उन्होंने हमारे जहाज़ के मालिक के बारे में पूछा और जहाज़ पर हमारे नाइजीरियाई साथिओं से कहा कि वो मालिक को फोन कर बता दें कि जहाज़ हाइजैक कर लिया गया है.

हमने समुद्री डाकुओं से कहा कि हमारा जहाज़ पुराना है, खाली है और मालिक ज्यादा पैसे नहीं दे सकेगा. हमने उनके सामने प्रस्ताव रखा कि वो हमारे जहाज़ से चल कर दूसरे किसी जहाज़ को हाईजैक कर लें और हमें छोड़ दें।

मगर नाईजीरियाई साथियों ने उनसे कह दिया कि मालिक पांच अरब डालर तक दे सकता है क्योंकि वो काफी पैसे वाला है.।समुद्री डाकुओं ने कहा कि जहाज़ पर कुछ नहीं है तो वे मालिक से हमारी जान की कीमत वसूलेंगे।

अंततः समुद्री डाकुओं की मांग पूरी होने के बाद ही उन्होंने सकुशल उन सभी २२ लोगों को रिहा कर दिया। और ये उत्कर्ष का उस समय का अनुभव है,जो उसने वहां से छूटने पर लखनऊ आकर हम सबसे साझा किया।

अलका गुप्ता 'प्रियदर्शिनी' 
लखनऊ उत्तर प्रदेश।
स्व रचित मौलिक व अप्रकाशित
@सर्वाधिकार सुरक्षित।

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10 Comments

Pallavi

22-Sep-2022 09:32 PM

Beautiful

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Abeer

22-Sep-2022 10:58 AM

Behtarin rachana

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Barsha🖤👑

21-Sep-2022 05:22 PM

Beautiful

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